मैं तुला हूँ एक नयी काव्य रचना, समाज के हर वर्ग की भावनाओ एवं व्यथा को दर्शाती हुई प्रतिनिधि कविताओं का समूह है। प्रत्येक कविता में पाठक स्वयं नायक की भूमिका में अपने आपको अनुभव करता है । एक वैभवशाली व्यक्तित्व का मिथ्याभिमान स्वयं उसके सामने चूर चूर हो जाता है जब वो "मैं हूँ क्या, कुछ नहीं"कविता का केंद्रबिंदु बन जाता है ।
जीवन के लम्बे संघर्ष के बाद निराशा एवं थकान के अंतिम छोर पर कौन इंसान है जिसे माँ याद नहीं आती । वही एहसास कराती है कविता "माँ एक बार बुलाओ"। समय के साथ हम बदले या न बदले ये जरूर है की हम आसानी से कह देते हैं "वक़्त बदलता है"। हमारा मन जहाँ एक ओरे हमारी सत्ता को अलग अलग भौतिक रिश्तों में बाँट देता है वही अंतर्मन ईश्वर से जुड़ा रहना चाहता है । अभीप्सा,समर्पण एवं सरलता का भाव लिए कविता "प्रभु का अंश" हमारे लिए एक नया द्वार खोलती लगती है।
एक झूठा दर्प (ईगो) तथा उससे पैदा होती गलतफहमियां और फिर एक प्रायश्चित का भाव क्या वो पुराने रिश्ते जोड़ पता है, यह है वो सरलता जो कहती है "काश कुछ कदम चल लेता" ।
प्राकृतिक वनों को ललते कंक्रीट के जंगल और उनके निर्माताओं की पाश्विक मानसिकता हमें "जानवरों की दौड़"में बरबस शामिल कर लेती है। सड़कों के किनारे अत्यन्त अभावों की जिंदगी जीते और लोहार का कार्य करते महिलाएं, बच्चे एवं वृद्धा भले ही दया से भरा हमारा ध्यान आकर्षित करते हो, पर उनका हमारे प्रति क्या भाव है यह तो तभी ज्ञात होता है जब शब्द तो उस मजदूर के हो ,पर उन्हें व्यक्त करने वाली कलम एक कवी की हो, तब "मुझे जीने का हक़ तो दे"में एक कटु सत्य हमारे सामने आ खड़ा होता है ।
"मुझे खुद में समां" कविता , विकास की रह पर बढ़ती उस सजा की अभीप्सा है जिसे बड़ी सरल भाषा में व्यक्त किया गया है । और फिर एक ओरे वृद्धावस्था में निराश्रित माँ के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध तथा दूसरी ओरे सांसारिक कार्यो में व्यस्तता एक बेटे की असमर्थता का बोध कराती है कविता "माँ तुझे कैसे छोड़ूं"।
पुस्तक की हर कविता अपने आपमें सम्पूर्णता लिए है तथा उनमे समाज के हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ अवश्य है। साहित्य प्रेमियों के लिए तो यह न केवल उनसे जुड़ने का माध्यम बनेगी अपितु आध्यात्मिक छेत्र में भी उनका मार्ग दर्शन करेगी ।
Genre: POETRY / Asian / GeneralBook is available on amazon and have already hit bestselling
हर धर्म का आगमन, किसी अधर्म से होता है
हर जीवन का प्रारंभ, किसी अंतिम क्रिया से होता है
सवेरा कितना भी शिथिल, गुदगुदाता, गर्म हो
एक गहन अंधकार ही, उस प्रकाश का देवता होता है
वो विलापित रुदन, जो हृदय को भेद जाता है
हर मुस्कान के समावेश से उठा एक उफान है
एक वृद्धा की चाल सा, बोझिल ये तन
कहीं नव जीवन संचार, का
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English
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Translation in progress.
Translated by jasline dixit
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